Friday 5 September 2014

MARDAANI

 'मर्दानी'

23 अगस्त ,2014 
बहुत दिनों बाद मेरा और कपिल का प्लान बना की आज   बाहर फिल्म देखेंगे और बाहर ही  अच्छे से रेस्तरॉ   में डिनर करेंगे । हमने 'मर्दानी' फिल्म का चुनाव किया…ऐक्चुली इस चुनाव में मेरा योगदान ज़्यादा था…शायद मेरे अंदर की महिला 'स्त्री' के मर्दानी स्वरुप को देखने की आतुर हो रही थी. .... खैर फिल्म देखना शुरू किया और कोई शक नहीं की फिल्म अपने  शीर्षक  पर खरी उतर रही थी …… जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ रही थी "रानी मुखर्जी " संभवतः वहा बैठी महिला दर्शको की प्रेरणा बनती जा रही थी.…… गहरे रंग की लिपस्टिक से ढके होठो से "ग्रेट…… वैरी गुड.…… एक और लगा"  जैसे अलफ़ाज़ सुन कर मेरे भी रोंगटे खड़े  हो रहे थे । हाई हील सैंडल्स और फैशनेबल कपड़ो में टिप-टॉप तैयार महिला दर्शको का वर्ग शायद 'रानी' की मर्दानी ख़ूबसूरती पर फ़िदा हो रहा था…… फिल्म अपने चरम पर थी..... रानी के संवाद महिलाओं की ही नहीं बल्कि पुरुष वर्ग की भी तालियाँ बटोर रहे  थे .... मेरा  मन कर रहा था की उठकर ज़ोरों से चिल्लाऊ…मेरे साथ बैठे कपिल .. जो महिला मुद्दो पर होने वाली मेरी प्रतिक्रिया से काफी समय से परिचित है.... मेरी भावनाओ में बराबर सहयोग कर रहे थे । फिल्म ख़त्म होने के साथ ही दर्शक दीर्घा जिस तरह से प्रकाशित हुई मानो  वो मेरे अंदर का जोश था .... चमचमाती लाइटों में मैं वही जोश ओरो के चेहरों  पर ढूढ़ने लगी, यकायक लगा की अब बस दुनिया जैसे बदल जायेगी। मन में इसी बदलाव को लिए कपिल के साथ मैं दूसरे मुकाम की ओर चल पड़ी।  रास्तें में फिल्म की बातें करतें हुए मैं कपिल की बाइक के पीछे बैठे हुए पुरूषों  की भीड़ को देखे जा रही थी  और मेरी नज़रें उस पुरुष को खोजने लगी जिसे मैं अपने मर्दानी स्वरुप के दर्शन करा सकूँ । हम अपने डेस्टिनेशन तक पहुँच चुके थे यानी टाइम टू डिनर … कितना ही जोश क्यों ना हो लेकिन पेट का भरा होना अनिवार्य है .... 
है ना???
 आज शनिवार था तो जयपुर की पब्लिक की भूख बढ़ी हुई और जेब का पैसा बाहर आने को आतुर हो रहा था।  इसलिए रेस्तरॉ में फैमिली की अच्छी -खासी  भीड़ थी पर मेरा जोश ठंडा नहीं पड़ा था और लगा जैसे यहाँ जोश को बाहर आने का मौका मिल जाएगा पर वहा पधारे सभी अतिथि गण परिवार वाले थे और परिवार के साथ स्वतः ही कुछ दायरें खीच जाते है।  बहरहाल मैंने कपिल यानी जीवन के साथी और  खाने पर कॉन्सेंट्रेट किया। अब था समय बैक टू पवैलियन यानी घर लौटने का… रात 10 से ऊपर बज चुके थे …हम जयपुर के उस इलाके में थे जहां 12 -12 :30 बजे तक दिन ही रहता है। बाहर निकले तो बड़ी बड़ी गाड़ियों  की  एंट्री और बढ़ गई थी । कपिल अपनी बाइक निकाल रहे थे की तभी मेरे सामने से तीन लडकियां निकली…… दिखने में ठीक-ठाक पर फैशन की  अच्छी समझ रखने वाली । उनमे से एक ने शॉर्ट्स पहने हुए थे … वो रोड क्रॉस कर रही थी की तभी सामने से एक कार में चार लड़के दूसरी तरफ से रोड क्रॉस कर रहे थे… शॉर्ट्स पहने हुए उस लड़की को देखकर जो  उन लड़को के एक्सप्रेशन थे वो मेरे जैसी किसी भी लड़की को विचलित करने के लिए काफी थे…वाह!इतनी देर से जिस मौक़े की तलाश कर रही थी वो वहीँ था....हा… लेकिन अचानक कुछ हुआ.... कोई विचार अचानक दिमाग पर हथोड़े जैसी चोट करने लगा । लड़को के भाव उन लड़कियों ने भी देखे। ।तो फिर उन्होंने कुछ क्यों नहीं किया…ना ही कुछ कहा.... क्यों???? तो फिर मैं फटे में टाँग क्यों अड़ाऊ!! .... लड़के मुझसे कुछ कहते तो मैं कहती । इस  विचार की समाप्ति तक उन लड़को की कार पार्किंग एरिया तक  पहुंच चुकी थी और वो लडकियां थी  अदृश्य … पर मेरे मस्तिष्क पटल पर विचार आये जा रहे थे… अगर मैं इन लड़को के पास जाकर भला-बुरा  कहु भी तो किस आधार पर…!! मर्दानी में रानी मुखर्जी के पास तो आधार था…-"प्यारी" ।    मेरे पास तो कुछ भी नहीं । 
कपिल आ चुके थे… मैं पीछे बैठ गयी। । थोड़ी दूर जाने पर एक अभद्र सी आवाज़ ने हमारा ध्यान खींचा। हमारे बराबर में तीन बाइक सवारों की आवाज़ थी जो मुझे घूरते हुए निकल रहे थे… मैंने तुरंत प्रतिक्रिया दी.... पर कपिल .... कपिल ने कुछ नहीं कहा । मैंने कपिल से  प्रतिक्रिया नहीं देने का कारण पुछा , 
उन्होंने सिर्फ  एक वाक्य में कहा- 
"तुम दोनों मेरी ज़िम्मेदारी हो"
मैं समझ गई उनके डर को.…… जो शायद डर नहीं बल्कि समझदारी थी । एक तो रात  का वक्त.... तीन हट्टे-कट्टे लड़के..... ओर मैं यानि कोई आम नहीं बल्कि उनकी बीवी…… 'गर्भवती बीवी' …!!
सच! इस  समय जोश से ज़्यादा होश ज़रूरी था क्योंकि मैं अब किसी नव-जीव की सारथी थी जिसके हाथो में किसी को मंज़िल तक पहुचाने की  ज़िम्मेदारी थी।
अब मेरे लिए" मर्दानी" के दो अर्थ थे…
 एक - 'अपने अस्तित्व के लिए लड़ना' जो रानी मुखर्जी के चरित्र ने किया.... 
दूसरा - 'दूसरे  किसी को अस्तित्व देने के लिए लड़ना'.... जो  चरित्र  अब मुझे निभाना था……।।  

प्रियदर्शिनी  "उर्मी "

Tuesday 6 May 2014

मैं सपने बेचता हूँ !!


 ले लो बाबू ले लो........ मैं सपने बेचता हूँ । 
छोटे- बड़े इस  दुनिया से परे  के… मैं सपनें बेचता हूँ!
जिनका नहीं ताल्लुक इस दुनिया से , 
मैं उस दुनिया के सपने बेंचता हूँ.… 
हां ये सच है बाबु हर किस्म के.…मैं सपने बेचता हूँ। 
 इन सपनों  मे खुशियाँ है..
इन सपनों में प्यार है। 
इन सपनो मे हंसी हैं..... 
एक रंगीला सँसार है ॥ 
झूठे ही  सही पर.....  मैं सपने बेचता हूँ
क़सम से बाबू .... मैं सिर्फ और सिर्फ़ सपनें बेचता हूँ । 

लेता हूँ गारंटी कि मेरे सपनें क़भी ना होंगे पूरे,
ऐसे लम्बी उम्र वाले मैं सपनें बेचता हूँ 
ऐ बाबू !!ले लो न सिर्फ़ एक..... 
 मैं सपने बेचता हूँ ॥ 


प्रियदर्शिनी "ऊर्मी "

Tuesday 13 August 2013

ye ehsas hai mere man ke...

ye dharatal hai mere sapno ke...

ye lahre hai meri ichhaon ki..

ye asmaan hai mere sapno ka........

 

 


clicked by- priyadarshini mishra

Sunday 10 June 2012





          

शायद  उन्हें भी इल्म है हमारे जज्बातों का.... 

 पर जान कर  अनजान बनना उन्हें

 हमने ही सिखाया है................

"उर्मी"

Friday 6 January 2012

दुल्हा ले लो...दुल्हा....!!!!

दूल्हा ले लो...... दूल्हा...!!!!!             
                  

ये वो जीव है जो तक़रीबन हर घर में मिलता है... 
गले में प्राईस टैग टांग कर ये लाखो-करोड़ो में बिकता है.|

इस जीव को बेचने वाले आते है बड़े ही बन-ठन के ...
खरीदने  वालो के घरों में खाएं माल-मसाले भर-भर के...|

अपने दुल्हे को लेकर घूमे ये विक्रेता घर-घर...
ऊंची बोली लगाने के लिए टर्राया करते टर्र-टर्र ...|

खाने -पीने, पढ़ाई-लिखाई और मेंटेनेन्स का बताकर खर्चा...
सुई से लेकर फर्रारी तक की फरमाइश का थमा देते है पर्चा...|

शादी के बाज़ार में लगाकर दुल्हे की दूकान ...
बेचे दूल्हा ऐसे जैसे हो कोई सामान|
दुल्हन को ना देख.. देखे दुल्हन के बाप की कमाई..
जहां  मोटा  आसामी मिला वही जीभ लप-लपाई....|

दुल्हन का बाप हो ग़रीब तो  गुर्राये...
जो हो अमीर तो दुम हिलाए |

कितने ही युगों से चला आ रहा है ये कारोबार...
आज भी जारी है ये लगातार|

इसलिए कहे "ऊर्मी" जब घर में हो बेटी तो बापू रोता है ...
और बेटे के  जन्म  पर खुश होकर ये कहता है-
''जब मेरा ये फल एक दिन  पकेगा,    
एम.बी.ए., इंजीनियर ,डाक्टर बन शादी के बाज़ार में अच्छे  दामो में बिकेगा.. 
मैं भी फिर फेरी लगाऊँगा, लाउड-स्पीकर ले खूब  चिल्लाउंगा- 
दुल्हा ले लो...दुल्हा....!!!"

                                                                     प्रियदर्शिनी 'ऊर्मी'